बातों ही बातों में

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प्रातः साढ़े आठ बजे से पौने बारह बजे तक दादा ( प्रणव कुमार भट्टाचार्य ) अपने कार्यालय में बैठते हैं । इस दौरान आश्रम के लड़के, लड़कियाँ, प्रौढ़ और साथ ही आगन्तुक भी उनसे मिलने आते हैं। वे उनसे हर प्रकार के प्रश्न पूछते हैं और दादा उनके उत्तर देते हैं। दादा के उत्तर व कहानियाँ एवं अन्य हास्य घटनाएँ जिनका वह वर्णन करते हैं उन्हें सुनते हुए बहुत अच्छा समय बीत जाता है। वे सब जो उनके कार्यालय में उपस्थित होते हैं इन वार्ताओं का आनन्द उठाते हैं । इन वार्ताओं के अनुलेखक (अमलेश भट्टाचार्य) चुपचाप एक कोने में बैठते हैं और बिना किसी की जानकारी के सब कुछ लिखते हैं। इसी संचय से चयनित कुछ अंश इस पुस्तक में उद्धृत किये गए हैं । हम पूरी आशा करते हैं कि इस पुस्तक को पढ़कर सभी आनन्द उठाएँगे ।

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