Description
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इस पुस्तक में भारतीय धर्म और संस्कृति व इसके पीछे के मूलभाव पर श्रीअरविन्द के शब्दों का संकलन कर उन पर एक विशद विवेचन किया गया है। इस विवेचन का उद्देश्य श्रीअरविन्द के उन गहन विचारों को सुस्पष्ट करना है मात्र जिनके आधार पर ही हम यह जान पाते हैं कि किस प्रकार हमारी संस्कृति के मूलभाव ने जिन-जिन बाह्य रूपों में अपनी अभिव्यक्ति की व इस प्रयास में जिन-जिन उतार-चढ़ाव के दौरों से वह गुजरी उनका सच्चा और गहरा औचित्य क्या रहा है।
‘‘भारत में अपने अंदर चमत्कारों को संसिद्ध करने, अपने आप को अकाट्य बंधन से मुक्त करने, भगवान् को धरती पर उतार लाने की श्रद्धा का अतिमानवीय सद्गुण है। उसके पास संकल्प-शक्ति का एक रहस्य है जो अन्य किसी राष्ट्र के पास नहीं है। अपने अंदर उस श्रद्धा, उस संकल्प-शक्ति को जागृत कर सके उसके लिए उसे केवल एक एेसे आदर्श की आवश्यकता है जो उसे इसका प्रयास करने को प्रेरित करे।’’
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